शैलपुत्री मन्दिर, मरहिअ घाट, वाराणसी, उत्तरप्रदेश (Shailputri Devi Temple, Varanasi, Uttar Pradesh)
नवरात्रों में नौ दिन तक दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विधान है। नवरात्र स्थापना के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा होती है। भारत में शैलपुत्री का पहला और प्राचीन मन्दिर वाराणसी के मरहिअ घाट पर स्थित है। इस मन्दिर में नवरात्र के पहले दिन माता के दरबार में भक्तों का सैलाब उमड़ता है। लाल चुनरी, लाल फूल और प्रसाद लिए भक्त कतार में रहकर माता के दर्शन के लिए अपनी बारी का इंतजार करते है। महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए माता से मन्नत मांगती है। इस मन्दिर की स्थापना के संबंध में एक पौराणिक कथा है। शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री और भगवान शिव की अर्धांगिनी है।
एक बार शैलपुत्री महादेव से नाराज हो गई और कैलाश पर्वत छोड़कर काशी में आ गई। काशी ने उनका मोह लिया। महादेव जब उन्हें मनाने आए तो शैलपुत्री ने उनके साथ जाने से इनकार कर दिया और काशी में ही बसने की इच्छा जताई। भोले ने उनकी बात मान ली। तभी से वह यहां काशी में विराजमान है। यहां माता की मूर्ति के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में फूल है। शैलपुत्री माता का वाहन वृषभ है।
Shailputri Devi Temple, Varanasi, Uttar Pradesh on Google Map
कैसे पहुंचें (How To Reach)
वाराणसी में बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन दोनों ही है। यहां से मन्दिर की दूरी करीब दो किलोमीटर बताई जाती है। तंग गलियां होने से यहां स्थानीय साधन जैसे रिक्शा का उपयोग करना सुविधाजनक रहता है।

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