दुर्गा कूष्माण्डा के पिंड से रिस रहे पानी को पीने से दूर होती है बीमारियां

। मंदिर में माता एक पिण्ड के रूप में लेटी हुई है और इस मूर्ति से हमेशा पानी रिसता रहता है। इस पवित्र जल के बारे में मान्यता है कि इसके सेवन से कई तरह की बीमारियां दूर हो जाती है।

कूष्माण्डा देवी मन्दिर, घाटमपुर, कानपुर, उत्तरप्रदेश (Kusmanda devi, Ghatampur, Kanpur, Uttar Pradesh)

कूष्माण्डा देवी को दुर्गा का चौथा रूप माना जाता है। देवी के इस रूप की नवरात्रों में चौथे दिन पूजा होती है। कूष्माण्डा को ब्रह्माण्ड की जननी कहा जाता है। कूष्माण्डा माता का मन्दिर कानपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर घाटमपुर में है। यह मन्दिर कई सौ साल पुराना बताया जाता है। मंदिर में माता एक पिण्ड के रूप में लेटी हुई है और इस मूर्ति से हमेशा पानी रिसता रहता है। इस पवित्र जल के बारे में मान्यता है कि इसके सेवन से कई तरह की बीमारियां दूर हो जाती है।

इस मन्दिर की स्थापना के संबंध में कहा जाता है कि राजा दक्ष ने एक बार यज्ञ किया था। इस यज्ञ में भगवान शंकर को नहीं बुलाया था। लेकिन पार्वती फिर भी जिद करके पिता का यज्ञ देखने आ गई। वहां पहुंची तो उनका तथा पति महादेव का तिरस्कार हुआ। यह वह बर्दाश्त नहीं कर पाई और यज्ञ वेदी में कूद कर प्राणों की आहूति दे दी। बाद में भगवान पार्वती के शरीर को लेकर कई जगह गए। इस दौरान माता के नौ अंग अलग—अलग स्थानों पर गिरे। घाटमपुर में भी माता का अंग गिरा था। जो मां कुष्मांडा के नाम जाना जाता है।

इस पिण्डी की खोज के संबंध में कहा जाता है कि कई साल पहले घाटमपुर के जंगल में एक कुढाहा नाम का ग्वाला गाय चराने आता था। उसकी गाय चरते चरते मां की पिंडी के पास आ जाती थी और उसके थनों से अपने आप दूध निकलने लगता। रोजाना ऐसा होता देख ग्वाले ने गांव वालों को यह बात बताई। बाद में यहां पिण्डी की पूजा करने लगे और वहां से निकलने वाले जल को माता का प्रसाद मानकर लोग सेवन करने लगे। इससे चमत्कारिक जल से कई की बीमारी ठीक हो गई और यहां मान्यता बढ़ती गई। नवरात्रों में तो यहां दर्शन के लिए भक्तों की लाइन लगती है। इस मन्दिर को कुढाहा माता मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है।

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कैसे पहुंचें (How To Reach)
घाटमपुर एक बड़ा कस्बा है। यहां से उत्तरप्रदेश का प्रमुख शहर कानपुर सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। कानपुर पहुंचने के बाद यहां टैक्सी या बस से पहुंचा जा सकता है। कूष्माण्डा माता का मन्दिर कानपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर है।

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